अटक गया अंडा / सालाना 135 करोड़ चाहिए, वित्त ने कहा- इतना नहीं दे पाएंगे
आंगनबाड़ियों में एक से पांच साल के बच्चों व गर्भवती-गर्भधात्री महिलाओं को सप्ताह में तीन दिन अंडा खिलाए जाने के प्रस्ताव पर वित्त विभाग ने पेंच फंसा दिया है। महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रस्ताव पर वित्त विभाग ने कहा है कि विभाग के लिए मंजूर मौजूदा बजट से ही यदि अंडा खिलाया जा सकता है तो इस पर ध्यान दें।
अतिरिक्त बजट नहीं दिया जा सकता। इस पर महिला एवं बाल विकास विभाग ने कहा कि अतिरिक्त बजट के बिना इस प्रस्ताव पर आगे नहीं बढ़ा जा सकता। वित्त विभाग ने इसके साथ-साथ कुछ अन्य आपत्तियां भी ली हैं। अभी तक ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि वित्त विभाग से मंजूरी मिलते ही प्रस्ताव को सीनियर सैक्रेटरी की मीटिंग में भेजा जाएगा और फिर कैबिनेट में।
दोनों विभागों के अपने-अपने तर्क
वित्त ने कहा-
- अंडे खिलाने के बारे में विभाग की ओर से कोई सर्वे अथवा अध्ययन कराया गया है?
- क्या मिड-डे मील या पोषण आहार में ही यह शामिल है या अलग से अंडा दिया जाएगा?
- इसके लिए अलग से कोई बजट नहीं मिलेगा। जो पैसा अभी मिलता है, उसी में काम करना होगा।
महिला एवं बाल विकास का जवाब-
- बिना प्रस्ताव अथवा योजना के मप्र में अध्ययन कैसे कराया जा सकता है। एेसा कोई सर्वे नहीं हुआ। अन्य राज्यों से जानकारी जुटाई थी, जहां अंडा परोसा जाता है।
- नहीं, अंडा अथवा इतनी ही राशि के फल का वितरण मौजूदा व्यवस्था के अतिरिक्त है।
- मौजूदा बजट से नई व्यवस्था का संचालन संभव नहीं। अतिरिक्त बजट की जरूरत होगी।
बजट का गणित इसलिए बिगड़ा
- बताया जा रहा है कि लगभग 17 से 18 लाख बच्चों-महिलाओं को सप्ताह में तीन दिन अंडा दिया जाना है। इस पर सालाना करीब 135 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। पूर्व में अनुमान था कि 113 करोड़ रुपए खर्च होंगे, लेकिन 10 लाख बच्चों को मिलाकर यह संख्या 18 लाख तक पहुंच सकती है। इसलिए बजट बढ़ जाएगा।
- महिला एवं बाल विकास विभाग के सूत्रों का कहना है कि जो अंडा नहीं खाएंगे, उन्हें उतनी ही राशि के फल दिए जाने हैं। अंडा अथवा फल पूर्व में मिलने वाले मिड-डे मील अथवा पोषण आहार के अतिरिक्त होगा। इसलिए बजट की जरूरत पड़ेगी।
बैठक में उठा मुद्दा, आदिवासियों में कुपोषण अधिक, अंडा देना ठीक
राज्य सरकार आदिवासी उपयोजना की राशि को पूरी तरह खर्च करने के लिए जनसंख्या के आधार पर बजट का आवंटन करने का एक्ट विधानसभा में लाएगी। इसके साथ ही राशन दुकानों पर अनाज लेते समय अंगूठे की अनिवार्यता को भी खत्म किया जाएगा। मुख्यमंत्री कमलनाथ की अध्यक्षता में हुई मध्यप्रदेश आदिम जाति मंत्रणा परिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया।
इस बैठक में फुंदेलाल मार्को समेत कई विधायकों ने आदिवासियों के साथ आ रही दिक्कतों के बारे में अपनी बात रखी। साथ ही कहा कि मजदूरी करने वाला आदिवासी जब अनाज लेने जाता है तो अंगूठे नहीं मिलते। बार-बार उसे चक्कर लगाना पड़ता है। हीरालाल अलावा ने आदिवासियों में कुपोषण की बात उठाते हुए कहा कि उन्हें भी अंडा दिया जाना चाहिए। अलावा समेत अन्य सदस्यों ने आंगनबाड़ियों में अंडा देने के प्रस्ताव का स्वागत किया।